[120] मिर्जा गालिब की वन लाइनर शायरियाँ
[120] मिर्जा गालिब की वन लाइनर शायरियाँ
मिर्जा गालिब उर्दू और फारसी के महान शायरों में से एक हैं। उनकी शायरी में इश्क, दर्द, जिंदगी और फलसफे की गहराई होती है। गालिब की शायरी दिल की गहराईयों को छूती है और उनकी भाषा की मिठास आज भी दिलों में बसी हुई है। उनकी शायरी हर दौर में प्रासंगिक रहेगी और उनकी कविताओं का जादू हमेशा बरकरार रहेगा।
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यूँ।
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।
कोई उम्मीद बर नहीं आती, कोई सूरत नज़र नहीं आती।
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता।
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है, आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब', जो लगाए न लगे और बुझाए न बने।
कितने शीरीन हैं तेरे लब कि रक़ीब, गालिब।
बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे।
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन।
हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे।
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है।
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता।
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल।
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना।
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता।
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन।
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है।
मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए।
है और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे।
बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे।
हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे।
ख़ानमाँ ख़राब है ‘ग़ालिब’।
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यूँ।
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही।
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है।
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।
कोई उम्मीद बर नहीं आती।
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन।
बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे।
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल।
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना।
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता।
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन।
कितने शीरीन हैं तेरे लब कि रक़ीब।
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है।
कोई उम्मीद बर नहीं आती।
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता।
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन।
बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे।
हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे।
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है।
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त।
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'।
कितने शीरीन हैं तेरे लब कि रक़ीब।
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल।
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना।
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता।
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन।
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है।
मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए।
है और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे।
बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे।
हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे।
ख़ानमाँ ख़राब है ‘ग़ालिब’।
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यूँ।
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही।
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है।
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।
कोई उम्मीद बर नहीं आती।
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन।
बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे।
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल।
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना।
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता।
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन।
कितने शीरीन हैं तेरे लब कि रक़ीब।
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है।
कोई उम्मीद बर नहीं आती।
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता।
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन।
बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे।
हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे।
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है।
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त।
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'।
कितने शीरीन हैं तेरे लब कि रक़ीब।
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल।
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना।
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता।
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन।
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है।
मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए।
है और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे।
बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे।
हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे।
ख़ानमाँ ख़राब है ‘ग़ालिब’।
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त, दर्द से भर न आए क्यूँ।
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही।
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है।
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।
कोई उम्मीद बर नहीं आती।
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन।
बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे।
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल।
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना।
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता।
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन।
कितने शीरीन हैं तेरे लब कि रक़ीब।
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है।
कोई उम्मीद बर नहीं आती।
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता।
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन।
बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे।
हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे।
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है।
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त।
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'।
कितने शीरीन हैं तेरे लब कि रक़ीब।
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल।
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना।
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