[100] राहत इन्दौरी की खूबसूरत शायरियाँ
राहत इन्दौरी एक मशहूर भारतीय शायर और गीतकार थे, जिनकी शायरी अपनी सरलता, गहराई, और भावनाओं की प्रबलता के लिए जानी जाती है। उनकी शायरी में प्यार, दर्द, समाज और जीवन की विविधता के रंग मिलते हैं। इस लेख में राहत इंदौरी की बेस्ट शायरीयों का संकलन है।
बुलाती है मगर जाने का नहीं, ये दुनिया है इधर जाने का नहीं।
अब जिसके जी में आए वही पाए रौशनी, हम ने तो दिल जला के सर-ए-आम रख दिया।
हाथ खाली हैं तेरे शहर से जाते-जाते, जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते।
शाखों से टूट जाए वो पत्ते नहीं हैं हम, आँधियों से कह दो कि औकात में रहें।
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता है, चाँद पागल है, अंधेरे में निकल पड़ता है।
लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में, यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है।
सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है।
इन्हीं ख़तों में तुम्हारा सलाम भी होगा, यही ख़याल था और मुझे आराम भी हुआ।
कोई अंधेरा नहीं है जो उजाला न करे, रात कालेज की है बच्चों को संभाला न करे।
छू रहे हैं रूह को कुछ यूँ सफ़र के सिलसिले, अब ख़ुदा के पास भी जाते हुए डर लगता है।
मैं मर जाऊँ तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना।
हमसे पहले भी मुसाफिर कई गुजरे होंगे, कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते।
मस्जिदों में पढ़िए नमाज़ आराम से, आज कोई जाने वाला देर तक रुका नहीं।
आइना देख कर तसल्ली हुई, हमको इस घर में जानता है कोई।
दो गज सही मगर ये मेरी मिल्कियत तो है, ऐ मौत तूने मुझको ज़मींदार कर दिया।
मैं जो आया था समझाने को कुछ ज़ख्म लिए, और अब अपने भी कहने लगे तू ठीक नहीं।
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है, ये सबका है सबका रहेगा।
तुम्हारी मर्ज़ी से साँसें नहीं चल सकतीं, हर एक बात पे कहते हो कि यूँ करते, यूँ करते।
उसकी कत्थई आँखों में है जंतर-मंतर सब, चाक़ू-वाक़ू, छुरियां-वुरियां, खंजर-वंजर सब।
सफर की हद है वहाँ तक बस, कि कुछ निशान रहे, चले चलो कि जहाँ तक ये आसमान रहे।
सिर्फ खंजर ही नहीं, आँखों में पानी चाहिए, ऐ खुदा दुश्मन भी मुझको खानदानी चाहिए।
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर, जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएं।
बन के एक हादसा बाजार में आ जाएगा, जो नहीं होगा वो अखबार में आ जाएगा।
ख़ुद को भी हम ने तबाह किया औरों का दिल भी दुखा बैठे, अपने ही लहू में भीग कर हम सड़कों पर निकले थे।
बोतलों में जहर, बारूद किताबों में मिला, चैन की नींद है हत्यारों की नींद।
साथ ही साथ वो मुझको अपना समझते रहे, मुझसे आगे भी उन्हें रास्ता चलता रहा।
किसने दस्तक दी ये दिल पे, कौन है, आप तो अंदर हैं, बाहर कौन है?
आग के बाद ही समझ आई, तेरे पहलू की गंध।
छोड़ो माज़ी की बातें, पिछला मौसम जाने दो, फिर से लिखेंगे नई दास्तान।
जितना जले सरे-आम, उतनी ही मशहूर हुई, ये लौ मेरी, फितरत ही है रोशन होना।
जिनका अंदाज़े करम औरों से ज़्यादा होता है, वो शख़्स चाहे जो भी हो, दिल के पास होता है।
आसमां पे है ख़ुदा और ज़मीं पे हम, आजकल वो इस तरफ़ देखता है कम।
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है, आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा।
छेड़खानी नहीं छोड़ेंगे तेरी गली में, हम इश्क़ के बर्बाद घराने से हैं।
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं, तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं।
राह में टकरा गए थे चाँद और सूरज कभी, अपनी हथेली पे सूरज-चाँद रख लेते हैं हम।
इस तरह मिलने का अंदाज़ कुछ नया हो जाए, ये ज़मीं खुल जाए और आसमां हो जाए।
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे, कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते।
शहर के लोग जलते हैं तो जलने दो, इस चिराग़ का कुछ हक़ तो अदा होना है।
हमसे पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे, कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते।
दिल में अब यूँ तेरे भूले हुए ग़म आते हैं, जैसे बिछड़े हुए काबे में सनम आते हैं।
सिर्फ खंजर ही नहीं, आँखों में पानी चाहिए, ऐ खुदा दुश्मन भी मुझको खानदानी चाहिए।
हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली, ये मुशायरा मेरे बाद भी रोशन रहेगा।
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर, जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएं।
ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे, तू बहुत देर से मिला है मुझे।
छू लिया जिस्म मेरा आपने फूलों की तरह, अब मेरी ज़िन्दगी में ख़ुशबू का सामान लिख देना।
मैं ख़याल हूँ किसी और का, मुझे सोचता कोई और है, सर-ए-आईना मेरा अक्स है, पास-ए-आईना कोई और है।
रहना चाहता हूँ सो तुझमें कहीं, वक़्त का तन्हा मुसाफ़िर न बनूं।
मैं हूँ दिलवाले किसी और का, कोई और है जो मुझसे प्यार करता है।
अब ना मैं हूँ ना बाकी हैं ज़माने मेरे, फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरे।
नए किरदार आते जा रहे हैं, मगर नाटक पुराना चल रहा है।
अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आएगा कोई जाएगा।
ख़ुदा ख़ैर करे ये तो मेरा दिल कहता है, कभी-कभी मुझे तेरा ग़म अच्छा लगता है।
हमको मिली है आज ये घड़ियाँ बड़ी मुश्किल से, कुछ बातें कर लें हम से, हमसे।
साथ चलते रहे, साथ ही चलते रहे, दूर तक हमसफ़र मुझको मंज़ूर था।
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें, जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें।
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं, कभी धुएँ की तरह पर्वतों में बिखरते हैं।
सबकी पलकों में है मुरव्वत का पानी, मगर हर दिल में ज़हर रहता है।
एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तों, दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो।
झूठे लोगों का हुजूम है हर तरफ़, कोई सच बोले तो बातों में उतरता नहीं।
कभी अपने भी मिरे हक़ में दुआ करते हैं, देखता हूँ कि वो मुझसे भी वफ़ा करते हैं।
सड़क पे निकलो तो कोई ना कोई झगड़ा है, बहुत दिनों से मिरी मुलाक़ात उससे नहीं।
अब हम से ये भी पूछा नहीं जाता, वो कहां हैं किस हाल में हैं।
बदन में आग लगी थी सभी मसीहाओं की, सभी की जेब में शीशियाँ थीं दवाओं की।
आसमां क्यों नहीं फटता देख कर ये सब, लोगों ने धरती को जन्नत बना रखा है।
बच के निकला हूं गली-गली ज़माना मेरा, मेरी आवारगी ही मेरी सदा है।
उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में, इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए।
छीन कर हाथों से गर्दिश में उछाले हैं तुझे, हमने देखा है तुझे, वक्त पे पाले हैं तुझे।
मुझको आने में कोई देर नहीं लगती है, मैंने देखी ही कहाँ है तेरी दीवार अब तक।
दुनिया के जज्बात को भी खोल कर देख, हर आदमी में तुझको इंसान मिलेगा।
तुझसे मिलना बड़ी बात नहीं, बात तो ये है कि मिले रहते।
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है, मिल जाए तो मिट्टी है, खो जाए तो सोना है।
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता।
सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है।
उसकी ज़िद है कि उसे, चाँद पे जाना है 'राहत', मैं ये कहता हूँ कि ख़ुद को ज़रा बेहतर कर ले।
मिट्टी का बना हूँ, वापस मिट्टी में मिल जाऊँगा, काँच का बना होता तो साथ टूट जाता।
सबको परेशान किया, फिर सबकी परेशानियाँ उठाईं मैंने, वो कह रहे हैं के आदमी अच्छा था।
जिनके चेहरे पर कोई दुख नहीं, शायद उनके पास दिल भी नहीं।
दुनिया को बोलने दो, अपने ही फसाने लिखो, हुकूमत से नहीं, दिलों से जमाने लिखो।
हमसे पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे, कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते।
मैंने अपनी आँखों को जो बंद कर लिया, अंधेरा और गहरा हो गया।
जो आज साहिब-ए-मसनद हैं, कल नहीं होंगे, किराएदार हैं, जाती मकान थोड़ी है।
उन्हें मालूम है किस किस ने लूटा है मुझे, फिर भी वो कहते हैं ये लुटेरा कौन है।
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं, कभी धुएँ की तरह पर्वतों में बिखरते हैं।
कहने वालों का कुछ नहीं जाता, सहने वाले कमाल करते हैं।
हमसे पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे, कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते।
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां, रंग लाएगी हमारी फ़ाक़ामस्ती एक दिन।
जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे, मैं कितनी बार लुटा हूं, हिसाब तो दे।
मैंने अपनी मौत की अफ़वाह उड़ाई थी, दुश्मन भी कह उठे कि बंदा ज़िंदा है।
तुझसे मिलना बड़ी बात नहीं, बात तो ये है कि मिले रहते।
हमसे पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे, कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते।
चराग़ों को आँखों में महफूज़ रखना, बड़ी दूर तक रात ही रात होगी।
अपनी तबाही में हाथ उसका भी है शामिल, जिसको गवारा नहीं मेरा उजड़ना।
उसने जहर भी दिया तो कहने लगे लोग, क्या बात है कि उसने कहा, पियो और जियो।
फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो, इश्क़ खता है, तो ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो।
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता है, चाँद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है।
अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है, हर नए शहर में घर छोड़ दिया जाता है।
मेरे किरदार पे सख़्त ऐतराज़ करने वाले, तेरा नाम भी नहीं है उन गवाहों में।
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है, उम्र गुज़री है तुम्हें आवाज़ लगाते हुए।
वो चाहता था कि कासा भी मेरे सर होता, मैं हूँ दीवाना तो पत्थर मेरे घर होता।
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